Chetna
Teacher, Prerna Girls School
घरौंदा
सोचती हूँ ,
एक घरौंदा बनाऊँगी मैं ,
एक छोटी गुड़िया लाऊँगी मैं
उसकी खिलखिलाहट पर मुस्कुराऊँगी मैं
खिली हुई धूप में उसका डगमगाते कदमो से चलना ,
जमीन पर लोट कर उसका खिलौने के लिए
जिद करना
उसकी हर नटखट अदा पर वारी जाऊँगी मैं
लेकिन बिना मेरी ऊँगली पकड़ कर चलना
भी उसे बताऊँगी मैं ,
परियो के साथ जीवन के कटु सत्य की
कहानियां भी सुनाऊँगी मैं ,
सब कुछ सिखलाऊंगी मैं ,
पर उसे खुद से थोड़ा अलग बनाऊँगी मैं ,
अपने भावों को सिर्फ कागजों पर नहीं
समाज के सामने भी अभिव्यक्त करना सिखाऊगी मैं।