बिटिया की कलम से

 

 

Suman Diwedi
Study Hall School

बिटिया की कलम से

स्वप्न यूँ बिखर गए,
अश्रु बनकर बह गए ,
हम राह देखते रहे,
वे मौन व्रत लिए रहे ।

कोई ना था पास तब,
जीने की मुझमे चाह तक,
वस्त्र तार -तार हो गए ,
हम जार -जार रो पड़े ।

साँसों में भी तब जान थी ,
धड़कन की उसमे आस थी,
मोमबत्तियाँ हैरान थी,
जलने की उनमे चाह थी।

जो पिघल-पिघल कह गई
दास्ताने-जुर्म की,
आवाम ने आवाज़ दी ,
अब और नहीं! और नहीं !

होगा शहीद इस तरह,
मिल करके आज ये कहे,
बेटी है गौरव देश की,
पत्नी और जननी वही,

जीने का उसे अधिकार दो!
उसे उसका संसार दो!
यहाँ मान को सम्मान दो!
अब राह,देखेंगे नहीं ।

तुम मौन व्रत लिए रहो।
हम साथ देंगे नहीं !!!!!

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