बिटिया बनाम हाशिया

Suman Diwedi
Study Hall School
भारतीय इतिहास भले ही वीरांगनाओ की शौर्य गाथा से भरा हो। उसे देवी,शक्ति,दुर्गा,काली, कुछ भी कहा गया हो, परन्तु ये भी कटु सत्य है कि तमाम कोशिशो और सामाजिक विकासो के बावजूद भी उसे हाशिये पर ही रक्खा जाता है क्यों? क्यों जन्म लेने से पूर्व ही बच्चियों को मार देने की प्रथा बदस्तूर जारी है? एक खोज के अनुसार-‘ कन्या भ्रूड़ हत्या’भारत में आज भी चली आ रही है।उम्मीदों के विपरीत कन्या हत्या कम होने के बजाये कुछ दशको से बढ़ती ही जा रही है।

निजी बात पर आधारित एक शोध (45 मिलियंस दौतर्स मिसिंग) के अनुसार -जब लड़के का जन्म होता है तो औरते थाली बजाकर या हवा में आग उछाल कर उसके जन्म की घोषणा करती है। लेकिन यदि परिवार में बेटी पैदा हो जाये तो परिवार की बुजुर्ग औरत जाकर परिवार के पुरुषो से पूछती है कि -‘बारात रखनी है या लौटानी है’।अगर आदमी ये जवाब देता है कि ‘लौटानी है’। तो सारे पुरुष चले जाते है और तब जच्चा माँ को नन्ही बेटी के मुहँ में तम्बाकू रखने को कहा जाता है। जच्चा माँ के विरोध का मतलब है,उसकी जान को खतरा या उसे घर से निकाले जाने की धमकी।

सोचिये और विचार भी कीजिये की इसका जिम्मेदार कौन?मै तो कहती हूँ ये एक सोची समझी साजिश है जिसकी नीति के तहत बेटियों को हाशिये पर सरकाया जा रहा है।उनकी सत्ता को मिटाया जा रहा है।प्रश्न गंभीर है कि एक ऒर जहां देश में जातिगत,धार्मिक,सामुदिक,दंगों में कत्लेआम खुलेआम होता है वही दूसरी    ऒर शिक्षा विकास के बावजूद भी इसे गुप्त रूप से लोग कर रहे है, और शायद वे ये सोच रहे है कि परिवार को संतुलित करने का यही एक कारगर तरीका है-‘बेटा बचाओ -बेटी हटाओ’।अगर मै गलत नहीं हूँ तो आप ही बताइए की क्या ये सच नहीं कि कई साल पहले जब हम तकनीकि रूप से इतने विकसित नहीं थे। बच्चियों को तो हम तब भी मार देते थे। आज जब हम शिक्षित है तो दो कदम आगे है। हम अल्त्रासौन्द कराकर यह पहले ही जान लेते है कि गर्भस्थ शिशु क्या है? शिशु का लिंग पता चलते ही हम उसे रखने या गिराने का फैसला ले लेते है क्या ये न्याय संगत है? या भविष्य में होगा। मै पूछती हूँ कब मिटेगा ये हाशिया?

उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध लोकगीत है-
प्रभुजी! मै तोरी विनती करूँ, पैयाँ पडूं बार-बार,
अगले जन्म मोहि बिटिया न दीजो, नरक दीजो डार ।
सुनने में यह भले ही मर्मस्पर्शी लगता हो परन्तु इतना तो  स्पष्ट कर देता है की बेटियां बोझ है-आर्थिक बोझ –
उनके रहन-सहन,खानपान,शिक्षा-दिशा,विवाह-दहेज़। एक पुरानी कहावत है कि -‘बेटियों को पालना ऐसा है जैसे पड़ोसियों के बागीचे में पानी देना’ कितना दुखद है ये कथन और शर्मशार कर देने वाला भी- की जो जननी है उसका जिम्मेदार कौन? पिता ? पति ?या ससुराल ? दुःख ? दहेज़ और अभिशप्त जीवन।

सोचिये अगर सामाजिक रीतिरिवाज एक माँ-बाप को यदि बेटी जन्म की खुशी नहीं देते तो हम क्या आशा रक्खे कि यही समाज आगे चलकर बिटिया को हाशिया नहीं समझेगा?
मै थी
तुम्हारे अन्दर
सांस और
जीवन बनकर
सुन भी
न पाई थी
अपनी धड़कन
कतरा-कतरा
कर दिया मेरा जीवन !!!

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4 thoughts on “बिटिया बनाम हाशिया

  1. Let’s keep our spirit and vitality alive for each of those girls who have gone through this.Gender discrimination still persists. In their work places they are doing extremely well but at their homes they are never in command and some are even ill treated. If a country can’t protect its women, half its population, it is not civilized.

  2. MEN ,
    How many daminis should die before you realize women’s importance in this country ???
    THINK OVER IT !!!!
    ITS YOUR TIME TO PROTECT WOMEN !!!
    Maybe its your mother’s or sister’s turn!!

  3. MEN,

    HOW MANY DAMINIS SHOULD DIE BEFORE YOU REALIZE THE IMPORTANCE OF WOMEN IN OUR COUNTRY ???
    ITS YOUR RESPONSIBILITY TO PROTECT WOMEN ,
    IT CAN BE YOUR MOTHER’S OR SISTER’S TURN NEXT !!!

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