संगीता और रानी
कक्षा – 7
स्कूल- के.जी.बी.वी जौनपुर
चुकिं भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ साथ एक पुरुष प्रधान देश भी है । अर्थात भारत में बेटी शब्द ही असुरक्षित अनचाही और असमाजिकता का प्रतीक माना जाता हैं ।
सबसे पहले तो यह जानना बहुत आवश्यक है कि बेटियाँ अनचाही क्यों है । अर्थात जो माँ स्वयं किसी की बेटी किसी की बहन और किसी की पत्नी है वह स्वयं अपनी ही बेटी को जन्म नहीं देना चाहती हैं । इस प्रकार इस दुनिया में आने से पहले ही बेटियाँ अनचाहे और सौतेलेपन का शिकार हो जाती हैं । परन्तु यदि गलती से बेटियों का जन्म भी हो जाता है तो वह इस शाषित समाज में असुरक्षा की भावना से ग्रसित रहती है ।
इसका जीता जागता उदारहण है दिल्ली गैगरेप शिकार हुई । उस दामिनी का जिसको समाज ने बेटी होने का दंड भोगना पड़ा । अतः इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की मलीन मानसिकता और दुविचार तुक्ष भावनाएँ और शारीरिक बलिष्टता तथा बेरोजगारी और अशिक्षा के कारण ही समाज में बेटियाँ असुरक्षित है ।
आज के इस पढ़े लिखे सभ्य समाज की अशिक्षित तुक्ष भावनाएँ ही बेटियों के विकास में बंधक बनी हुई हैं । इस समाज का बहय आडम्बर हो आकर्षक और उत्कृष्ठ है परन्तु आंतरिक रूप से यह विचारहीन और खोकला है ।
सदियों से यह समाज बेटियों से दुर्व्यहवार और दुर्विचार का प्रतीक रहा है । जिससे नारी का रूप दुर्गा, काली, शक्तिशाली तथा समाजिक न होकर अबला शोषित शक्तिहीन और असमाजिक हो जाता है
आज के समाज में महिलाओं को सबला का नाम दिया गया है परन्तु यह भावना विलुप्त हो चुकि है कि नारी तुम केवल श्रध्दा हो विश्वास रजत नग पग तल में पीयूष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में ।
बेटी का जन्म हुआ तो मातम का दिन आया रे ।
घर संसार दुखी हुआ इससे, घोर अँधेरा छाया रे ।
पर ईश्वर की प्यारी बेटी
दुनिया की नही प्यारी रे
उसके बिना कोई बात नही बनती
पर दुनिया से हारी रे
बियाह हुआ ससुराल गई जब
तोड़ दे बंधन सारे
कुछ ही दिन के बाद खबर मिली
उसको दिया जलाया रे
बेटी का जन्म हुआ तो
मातम का दिन आया रे ।