Monika,
Teacher, Prerna Girls School
मैं मर्द हूँ तुम औरत
मैं भूखा हूँ तुम भोजन
यह है हमारे समाज के पुरुषो की मानसिकता सच में विचाराधीन है हम स्त्रियों के लिये। महादेवी वर्मा की कविता मैं नीर भरी दुःख की बदली, जहाँ लड़की मानो मिट्टी की गुड़िया हो, हर मोड़ टूटने और बिखरने का डर।
हम बढ़े भी तो कैसे,इस डर की कोठरी मे रहकर, अगर पुरुषो की एक जुटता कही दिखाई देती है, तो वह है नारी के शोषण में जहाँ उम्र, धर्मं, जांति , रंग, किसी का भेद नहीं वाह रे वाह हमारा समाज ।
कहने को तो आज महिलाएं पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाकर चल रहीं है। लेकिन सही माइने में इसे कायम रखने के लिए उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कीमत चुकानी पड़ती है । क्या भारत में औरतो को अपने अधिकार मिल रहे है।
1. लम्बा जीवन जीने की आज़ादी
2. अच्छी सेहत का हक़
3. बिना जुर्म के काम करने की आज़ादी
4. अपने फैसले लेने की आज़ादी
5. डर से छुटकारा पाने की आज़ादी
यह सभी हुक बे मतलब हो जाते है, जब पुरुष प्रधान देश में महिलाओं की आवाज का दमन कर दिया जाता है ।
भू मण्डलीय के कारण इस युग में जब कर लो दुनिया मुटठी में का उदधोश सुनाई देता है तो हम स्वयं को किसी शिखर पर खड़ा पते है पैर सच तो यही है की आधुनिक युग में यह एक काल बनकर हमारे सिर पैर मंडरा रहा है। इस काले बदल को हटाने के लिए धर्म के नाम पर रूडिवादी संस्कार हटाने पड़ेंगे । घर में दी जाने वाली लडको को आज़ादी हटानी पड़ेगी।
महिलाओ को शिक्षित और आत्म निर्भर बनाना पड़ेगा और साथ ही साथ कुछ भ्रष्ट मंत्रियों के हाथ से देश की डोर छीननी पड़ेगी।
विडंबना यही पर ख़त्म नहीं होती पुलिस की नज़रे उनके अशलील शब्दों से भरे हुए सवाल और मीडिया की मसालेदार बाते यह तो अभिमन्यु के उस च्क्रवियु में फंसे होने से भी , गहरा, षड्यंत्कारी चक्रवियु है और सबसे बड़ी दुःख की बात तो यह है की खुली आँखों में सबको दिखाई तो देता है पर कोई देखना नहीं चाहता । नारी को एक जुट होकर अब कहना नहीं पड़ेगा ‘ मंजिल मिल ही जाएगी, भटकते हे सही गुमराह तो वह है जो घर से निकले ही नहीं।
कोई लक्ष मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं ।
हारा वही है जो लड़ा नहीं।