कल्पना तिवारी
महिलाएं असुरक्षित अनचाही असमान
एक बेटे के जन्म से माता पिता फूले नहीं समाते, जबकि वही एक लड़की के जन्म से माता- पिता व पूरा परिवार शोक में डूब जाता है उन्हें निराशा व जिम्मेदारी की अनुभूति होती है बेटे के जन्म से ही दहेज़ व उसकी सुरक्षा की चिंता सताने लगती है
एक बेटी अपने माता पिता के घर रह कर उनकी इज्जत व सम्मान की रक्षा करती है और ससुराल में जाकर दूसरे परिवार को जोड़कर रखती है एक दुनिया में आकर दूसरी दुनिया का निर्माण करती है वही एक बेटा दूसरी लड़की के साथ बलात्कार करके कितनी लड़कियों के साथ कितने लोगो की जिंदगी नरक बनाने का कारण बनता है फिर भी बेटियों का दर्जा लडको की अपेक्षा नीचा समझा जाता है जब की उस बेटी को जन्म देने वाली माँ भी एक लड़की होती है एक बेटी का हक है कि उसे बेटे के समान दर्ज़ा मिले उसे इज्जत भरी नजरो से देखा जाये
लडको को कोई हक नहीं कि वो लड़कियों को असहाय समझे अब वक़्त आ गया है कि लडको सबक सिखाया जाये उन्हें स्त्री शक्ति का एहसास कराया जाये हमारी बेटिया बेटों से कमज़ोर नहीं है उन्हें अपराध के खिलाफ आवाज़ उठाना आता है लड़कियों को समानता का हक उन्हें मिलना चाहिए अन्यथा वे आगामी समय में अपने हक के लिए आवाज़ उठाने में भी पीछे नहीं रहेंगी
नहीं सहेंगे अत्याचार
लड़को अब जाओ तैयार