बेबस और मासूम

 रेनू सोनी   (छात्रा )
प्रेरणा स्कूल

 

कैद था एक आजाद पंक्षी
उसके मन में भी उड़ने की आशा छनकी
नही कर सकती थी वह अपने मन की
फिर भी उड़ने की एक आस पनपी

 

वो भी देख रही थी एक नया सवेरा
दूर करता उसके जीवन का अँधेरा
लेकिन उस पिंजरे का था घेरा
पल भर लगा उसको ये ख़्वाब रहेगा अधूरा

 

उसे मिली एक दिन आजादी
पिंजरे को खुला देख वहां से भागी
नही उठानी पड़ेगी पिंजरे की परेशानी
मेरे हाथ में है मेरी जिंदगानी

 

खुले आसमान में उड़ गई
एक और मुसीबत गले पड़ गई

 

आया एक विशाल पंक्षी
ऐसा लगा उसे मिली है धमकी

 

नही मांग सकती किसी और पंक्षी से सहारा
किसी तरह उसने वे वक्त गुजारा

 

मौका देख वहाँ से निकली
शायद उसने अपनी सोच बदली

 

वापस चली गई उस पिंजरे के अन्दर
नही बन पाई अपने मन की सिकंदर

 

इसका अर्थ ये है की स्त्री आजाद होते हुए भी वो कैद है  क्योंकि समाज उस पर नजर रखता है, फिर भी उस स्त्री को लगता है कि एक दिन समाज और समाज के लोग सुधरेंगें और अपनी सोच बदलेंगें और लड़की और लड़को में कोई भेद नही रहेगा और वो कल का सवेरा देखती है की लड़कियां एक खुशहाल जिन्दगी जी सकती है लेकिन समाज का डर उसे रोकता है कि स्त्री का पद हमेशा पुरुषो से नीचे रहता आया है और नीचे ही रहेगा । लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है कि वह कुछ बोल सकती है और आवाज भी उठाती है फिर उस स्त्री को एक रास्ता भी दिखाई देता है कि कानून उसकी सहायता करेगा, लेकिन कानून तो क्या उनकी कोई सहायता नही करता और बल्कि एक और मुसीबत आ जाती है और नारियों को धमकी मिलती है कि उसने ऐसा कुछ किया तो उसे मार दिया जायेगा, और वो किसी और स्त्री से सहायता नही ले सकती क्योंकि उसकी तरह सभी कैद हैं तब दुबारा वो वापस उसी जगह आ जाती है जहाँ वो पहले थी और हर स्त्री को लगता है की उसका अस्त्तित्व नही है

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