माँ तुम्हारी याद आती है

Nehal Bhatia
Prerna Girls School

खुदा ने ‘माँ ‘ से सवाल किया अगर आपके कदमो से जन्नत ले ली जाए और आपसे कहा जाए

की कुछ और मांग लो तो आप खुदा से क्या माँगोगी ……..?

तो ‘माँ’ ने बहुत खुबसूरत जवाब दिया ……………

“मैं अपनी ओलाद का नसीब अपने हाथ से लिखने का हक मांगूगी ।

क्योकि ……

उनकी  ख़ुशी  के  आगे  मेरे लिए जन्नत  छोटी  है।”

कोई माँ जब थपकी  से अपने बच्चे  को सुलाती है

खुद तो धुप सहती है, बच्चे  को आँचल  ओढाती  है ,

तो यह देख कर ,

माँ तुम्हारी याद आती है ।

जब परीक्षा के दिन मै घबराती थी , किताब खोल के बस सहम जाती थी ,

और माँ मुझे दही चीनी खिलाती थी ,

फिर खाना परोस कर परीक्षा का हाल पूछती थी ,

तो ये सोच ,आँखे नम हो जाती है ,

तब माँ तुम्हारी याद आती है ।

पिता की डाट का सिलसिला ,जब कम नहीं होता ,

माँ का पिता को समझाना के डाटना कोई हल नहीं होता

इस बार जरुर कुछ करके दिखाएगी ,

चुपके -चुपके से कही रो भी आती थी ,तो यह सोच

माँ तुम्हारी याद आती है ।

कॉलेज के दिनों में मस्ती करके घर देर से आना

फिर कोई पुराना सा बहाना बनाना ,

हर गलती को माफ कर वो मुस्कुराती थी ,

तो ऐसे  मे माँ तुम्हारी याद आती है ।

हर औरत की यही पहचान है , अपना परिवार संभालना ही सबसे पहला कर्तव्य मानती है ।

फिर भी समाज में वही बेटी ,वही माँ ,वही औरत कोई स्थान नही पाती ।

हमेशा पुरुषो द्वारा दबायी जाती है ।

हर क्षेत्र में पुरुषो द्वारा दबायी जाती है ।

हर क्षेत्र में अपनी जगह बनाती है फिर भी सुरक्षित  कही नहीं खुद को मानती है ।

यही बदलाव हमें समाज में लाना है ।

सुरक्षित  हर जगह को औरत के लिए बनाना है ।

वही स्थान उसे दिलाना है जिसकी वो हकदार है

जनम से पहले ही जो मार दी जाती है ,

उसे वही दुलार और प्यार दिलाना है ,

बस माँ हर औरत की कहानी सुन तुम्हारी याद आती है ।

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