गुड्डी तोमर
District Institute of Educational Training, Baghpat
सामूहिक दुष्कर्म की पीडिता को लेकर जो आँखे अभी तक क्रोध से लाल थी आज उनसे आंसू बह रहे थे । होट फड़फड़ा रहे थे , मगर आवाज नही निकाल रही थी । चेहरे गमगीन थे । एक अनजाने से रिश्ते से जुडा कोई अपना सा जो चला गया था । और हमारा ह्रदय रो रोकर कह रहा था कि निर्भय दामिनी को मौत नही हुई है हालंकि इस देश में इनसानियत की मौत नही हुई है भले ही वह नही रही लेकिन हम उसकी लड़ाई को ज़ाया नही जाने देंगे । मन में गम का बोझ लिए लोग जंतर मंतर पर उमड़ पड़े , जिसको मन की व्यथा कहने का जो तरीका समझ आया शांति से उसने वह किया । वह मासूम मर गई और दोषी जिन्दा है एक शर्मनाक और दुखद दिन ।
एक तुम्हें नही बचा सके लेकिन तुम्हारी बुलंद आवाज ने हम सभी को यह बता दिया कि बलात्कार कोई भूल या गलती नहीं है । उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि वह रात के समय घर से बाहर निकली । राजधानी की सड़को पर या सोचकर चली कि वह सुरक्षित है ।
स्वर मेरे तुम , दल कुचलकर पीस न पाओगें
मैं भारत की माँ , बहन या बेटी हूँ
आदर और सत्कार की मैं हकदार हूँ ।