मीनाक्षी बहादुर
वाइस प्रिंसिपल स्टडी हॉल
औरत सृष्टि की सबसे सुन्दर रचना । ईश्वर की अनुपम कृति, मन से कोमल, प्यार से भरी , इरादों से मजबूत एक नये जीवन को धारण करने वाली । विघाता सी रचनाकार । ईश्वर ने तो उसे अपना रूप ही दे डाला – नये जीवन की उत्त्पति का भार दे कर ।
युगों से अपने हिस्से की जिम्मेदारी उठाए कब औरत हाशिये पर चली गयी वह खुद ही न समझ सकी
सुंदरता कुचली जाने लगी
प्यार धोखा खाने लगा
इरादे टूटने लगे
कुछ प्रश्न हैं जिसके उत्तर शायद इस स्थिति के कारणों को सामने ला सकें
विचारणीय हैं विचार करके देखे —
औरत की कोमलता को कमजोरी में क्यों बदल दिया गया ?
क्यों दुनिया का भार उठाने वाली स्वयं को भार समझने लगी ?
क्यों उसकी इज्ज़त को इतना कमजोर बना दिया गया कि इज्ज़त लुटने के डर से भयभीत वह परिस्थितियों के सामने समर्पण करती चली गयी ?
क्यों “लड़की” होना अभिशाप बन गया ?
क्यों चंद गहनों और कपड़ो के लिए अपने ही उन्हें छलते है ?
क्यों आदर्शों का मुलम्मा ऐसा चढाया गया कि उसके अलावा कुछ हाथ न लगा ?
क्यों “देवी ” बनाया गया जबकि देवता राक्षस बन बैठे ?
क्यों उसके अस्तिव को वैसा ही नही स्वीकारा गया जैसे वह है ?
क्या उसका “निजत्व ” महत्वपूर्ण नही समझा गया
क्यों उसकी ” पहचान ” अपनी नही रही ?
समय आ गया है कि इस प्रश्नों के उत्तर टटोले जाये ।
प्रश्न पूछे जाये समाज के ठेकेदारों से जो अपनी सुविधा के लिए और को जब चाहे “ताज ” दे दें सब चाहें सूली पर चढा दे
समय आ गया है कि औरत अनचाही न रहे जन्म से
असुरक्षित न रहे तन से
असमानित न रहे मन से ।