नारी तुम केवल श्रध्दा हो

 

Chetna Jaiswal
Teacher, Prerna Girls School

नारी तुम केवल श्रध्दा हो जग के सुन्दर आगंन में।
पियूष सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।

नारी- नाम है सम्मान का, या समाज ने कोई ढोंग रचा है,
बेटी – नाम है दुलार का, या समाज के लिए सजा है,
पत्नी – किसी पुरुष की सभी है या यह रिश्ता भी एक उगी है,
माँ – ममता की परिभाषा है, या होना इसकी भी एक निरासा है,
नारी – नाम है स्वभिमान का, या इसका हर रिश्ता है अपमान का !
कहते है यहाँ सबको जिन्दगी स्वतंत्रता पूर्वक जीने का हक़ है। क्या आपको लगता है की हर व्यकित स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जी रहा है? नहीं- पुरुष शायद जी रहे हो पर महिलाओं को तो स्वतंत्रता शब्द  का अर्थ ही नहीं पता। औरत को सिर्फ एक ही शब्द से “नवाजा ” है की वह नारी ही देश का भविष्य उजागर करेगी – लेकिन सच तो यह है की इस पुरुष प्रधान देश में औरत ने कभी अपनी जिन्दगी जी ही नहीं क्योकि यहाँ नारी को एक वस्तु समझकर कठपुतली की तरह इस्तेमाल करते है! घर में पति बाहर छेड़छाड  बलात्कार इन सभी मुश्किलों से जूझना पड़ता है फिर भी उसे ही गलत साबित कर दिया जाता है ।
कहने को तो हम नारी आधी दुनिया है । मगर क्या कभी आधा घर भी हमारा हुआ है ? जन्म लेते ही दिखाई दिया , पिता और भाई का अधिकार होता रहा नारी के हर फैसले का प्रतिकार , शादी के बाद सहा पति, देवर और ससुर का तिरस्कार, जीवन का कौन सा पल जो नारी ने अपनी मर्जी से जिया सारे हक, सारे वजूद, सारे फैसले सिर्फ और सिर्फ पुरुष ने ही तो लिया फिर क्यों कहते है कि हम आधी दुनिया है
जो अपराध करता है वो तो अपराधी है ही, लेकिन जो ये अत्याचार बिना आवाज उठाए सहती है । वह नारी भी अपराधी है । यदि पति मारता है तो सास कहेगी आवाज  बाहर न जाने पाए तथा माँ कहेगी कि जैसा भी है पति है तेरा । इस तरह महिलाएं ही महिलाओं की असुरक्षा का मूल कारण है । इसलिए अब हम नारियों को आवाज उठाना ही नही बल्कि अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी रहना होगा ! और हम नारियों को संगठित होकर एक सवेरा बनकर प्रस्तुत करने का समय आ गया है । सूरज के उगने में जो दो हाथ पूजा के लिए उठते है । वही हाथ रात के  अँधेरे में दुष्कर्म करने से नही  डरते वर्षों से चला आ रहा रिवाज़ का ताना बाना जिसके नीचे पडा हर औरत को दब जाना,
पति देवर, सुसर, जेठ
हर एक के चढ़ गयी बनकर तुच्छ भेंट
आजादी क्या है उसने अब तक न जाना
दबाया गया उसे अनेक बहाना
बदलता गया दौर घुमती गई घडी की सुई
पुरुषों का रहा वही  रवैया  रही  उनकी आत्मा सोई
कोई तो आगे आकर आवाज उठाओ
बस अब नही सहेंगे चल कर उन्हें बताओ
तोड़ दो सब दीवारे और बेड़िया
अब नही चढ़नी  और पाप की सीढिया
औरत तू नही कमजोर
अब तेरे ऊपर नही किसी का जोर
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