दीपाली
प्रेरणा स्कूल
बहुत पहले मैंने यह कविता पढ़ी थी तमाम समाचार पत्रों में जब बेटियों पर अत्याचार के समाचार पढती हू तो फिर से यह कविता मेरे जेहन में उतर आयी सच है आज वक्त बदल रहा है अगर अब पुरुष बेटियों के मान –सम्मान और उनकी शक्ति पर शंका करेंगे तो बेटिया उन्हें धाराशाही करेंगी , तो ए पुरुषो अपनी सोच को बदलो / प्रस्तुत है ‘बेटिया ‘ शीर्षक नामक कविता
बेटिया
पढ़ रही है लिख रही है
और शिक्षित हो रही
एक नया संसार
रचना चाहती अब बेटियाँ
हो चुका है बहुत
आत्याचार उन पर आज तक
एक नया व्यक्तित्व
गढ़ना चाहती अब बेटियाँ
भेद अब अच्छा नहीं है
बेटे बेटी में यहाँ
भार बेटो सा ,
उठाना चाहती अब बेटियाँ
मत कहो उनको पराई
अब न ही अबला कहो
शक्ति का पर्याय
बनना चाहती अब बेटियाँ
उन की प्रतिभा का
समूचा जगत लोहा मान ले
काम ऐसे कर
दिखाना चाहती अब बेटियाँ
सिर्फ इंसा की तहर
जीने का हक दे दीजिए
जिंदगीं हस कर ,
बिताना चाहती अब बेटियाँ