रोली श्रीवास्तव
प्रेरणा स्कूल
बेटी
बेटी
माँ के लिए उसका बचपन ,
पिता के लिए प्यारा एहसास ,
बहन के लिए सहेली ,
भाई के लिए साथी ,
फिर भी इतने पर भी ………….
क्यों है वो अनचाही ?
क्यों है वो असुरक्षित ?
क्यों है वो असमान ?
कैसा सा रिश्ता नहीं निभाती वो ???
कभी बेटी के रूप में ….
कभी बहन के रूप में ….
कभी सहेली के रूप में ….
कभी बहू के रूप में ….
कभी माँ के रूप में ….
फिर भी प्रताड़ित होती रहती
कभी तानो से …….
कभी हिंसा से ……
कभी दहेज के लिए जलाकर मार दी जाती ……..
कभी पैदा होने से पहले ही ….
क्यों सहती है वो हर बन्दिश ?
क्यों रहती है वो सात परदों में ?
जो देख के ब्याह के लाए उसे,
क्यों जीती है उनकी दहशत में ?
क्यों डरती है ज़ुबा खोलने से ?
क्यों रह जाती है हर दर्द सहके ?
फिर भी रहना है अपने हर दर्द को छुपाके ,
सबके सामने मुस्कुरा के ,
क्यों हैं ये बेड़ियाँ ?
क्यों हैं ये बन्दिशें ?
क्यों हैं ये परदे ?
अब तो जागो ………..
तुम आज की नारी हो !!
खोल दो ये बेड़ियाँ ……….
तोड़ दो ये बंदिशें ……..
हटा दो ये परदे ……..
मत रहो तुम असुरक्षित असमान या अनचाही ,
लड़ो अपने हक़ के लिए ,
बनाओ अपनी एक नयी पहचान,
जो जान जाये ये दुनिया ,
और जाग जाये हर इंसान ।