Women!

Anushree Chaturvedi
Class X-C , Study Hall School

They march uptown for to reclaim the night
Carrying lighted candles and small battery hand lights
Their peaceful protest for basic human right
And in solidarity you will find much might.

They march for women house bound after dark
Who after sundown shun the street and park
Who bolt their doors a shield against their fear
The fear of danger to them ever near.

They march for women for a crime free life
For the rape victim and the battered wife
And for women wronged by men in every way
Such cases as we read of every day.

The anti women libbers well might say
That women nowadays have things their own way
But women still victims of rape and foul play
Such stories in newspapers every day.

And till women after sundown leave their home
And without fear walk unlit street alone
Then women must march to reclaim the night
And protest for a basic human right.

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बंद करो यह अत्याचार

प्रिया दुबे
Virangana Activist Group

बंद करो यह अत्याचार

तब होगा खुशी संसार ,

देते हो जिस तरह बेटी को अच्छे संस्कार

वैसे ही करो अपने बेटो से अब कुछ विचार

बाप मार के पैर देता माँ को इंकार

वैसे ही करता है बीटा अपनी पत्नी अत्याचार

करो अपने बेटो पर एक एसान

उसे बनाओ एक अच्छा इन्सान

करे वह माँ बहन और बेटियों का सम्मान

मर्द होने का करे न खुद पर अभिमान

पति अगर है परमेश्वर तो पत्नि है देवी के समान

इस पर अत्याचार करके क्यों बनते हो शैतान

इन से बनता है जीवन का अधार

इन दोनों के बिन सूना है संसार
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बेबस और मासूम

 रेनू सोनी   (छात्रा )
प्रेरणा स्कूल

 

कैद था एक आजाद पंक्षी
उसके मन में भी उड़ने की आशा छनकी
नही कर सकती थी वह अपने मन की
फिर भी उड़ने की एक आस पनपी

 

वो भी देख रही थी एक नया सवेरा
दूर करता उसके जीवन का अँधेरा
लेकिन उस पिंजरे का था घेरा
पल भर लगा उसको ये ख़्वाब रहेगा अधूरा

 

उसे मिली एक दिन आजादी
पिंजरे को खुला देख वहां से भागी
नही उठानी पड़ेगी पिंजरे की परेशानी
मेरे हाथ में है मेरी जिंदगानी

 

खुले आसमान में उड़ गई
एक और मुसीबत गले पड़ गई

 

आया एक विशाल पंक्षी
ऐसा लगा उसे मिली है धमकी

 

नही मांग सकती किसी और पंक्षी से सहारा
किसी तरह उसने वे वक्त गुजारा

 

मौका देख वहाँ से निकली
शायद उसने अपनी सोच बदली

 

वापस चली गई उस पिंजरे के अन्दर
नही बन पाई अपने मन की सिकंदर

 

इसका अर्थ ये है की स्त्री आजाद होते हुए भी वो कैद है  क्योंकि समाज उस पर नजर रखता है, फिर भी उस स्त्री को लगता है कि एक दिन समाज और समाज के लोग सुधरेंगें और अपनी सोच बदलेंगें और लड़की और लड़को में कोई भेद नही रहेगा और वो कल का सवेरा देखती है की लड़कियां एक खुशहाल जिन्दगी जी सकती है लेकिन समाज का डर उसे रोकता है कि स्त्री का पद हमेशा पुरुषो से नीचे रहता आया है और नीचे ही रहेगा । लेकिन एक दिन ऐसा भी आता है कि वह कुछ बोल सकती है और आवाज भी उठाती है फिर उस स्त्री को एक रास्ता भी दिखाई देता है कि कानून उसकी सहायता करेगा, लेकिन कानून तो क्या उनकी कोई सहायता नही करता और बल्कि एक और मुसीबत आ जाती है और नारियों को धमकी मिलती है कि उसने ऐसा कुछ किया तो उसे मार दिया जायेगा, और वो किसी और स्त्री से सहायता नही ले सकती क्योंकि उसकी तरह सभी कैद हैं तब दुबारा वो वापस उसी जगह आ जाती है जहाँ वो पहले थी और हर स्त्री को लगता है की उसका अस्त्तित्व नही है

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मजबूर नहीं है नारी किसी के एहसानों की

साधना रावत
वीरांगना प्रेरणा स्कूल

ये खुदा क्या कहु क्या सुनू और क्या मैं दिल की बया करू गर बन आये तो भी इस्त्री इस जहा

में तो बन क्या बाख पायेगा तो भी हैवानियत से ।

सिसक -सिसक कर सब कुछ सहती

है फिर भी किसी से कुछ नहीं कहती है ।भाइया भाभी हो या साथी

जीवन में कौन भला नारी का मजबूर नहीं है ,शक्ति किसी की शक्ति की।

मजबूर नहीं है नारी किसी के एहसानों की ।

बस मजबूर है , नारी अपने नारीत्व की भावनाओ की ।

 

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औरत ही औरत की बने दुश्मन

(श्यामली मुखर्जी )

प्रेरणा स्कूल

 औरत ही औरत की बने दुश्मन

तो कैसे हो समाज का कल्याण

बेटी से तुम्हे करना है प्यार

बहू भी है दुलार का पात्र

उन्हें देना ही  होगा समान , अधिकार

बेटी को कहते हो लक्ष्मी का आधार

बहू का करते हो दाह  संस्कार

बेटी बहू एक समान

ये है हम सब का मान

तभी होगा समाज का कल्याण  ।

 

 

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उठो जागो ! सोचो मत..

Nishu Singh
Prerna Girls School

हमारे देश में हमेशा नारी को कमज़ोर बनाया गया है /

हमेशा पुरुषो ने नारियो को दबाया डराया और धमकाया है /

और अगर उसने बोलने की हिम्मत जुटाई तो उसे मारा जाता है / या जिस प्रकार से चिल मरे हुए जानवर का माँस खाता है

उसी प्रकार नारी को एक लाश समझ कर पुरुषो ने खाया है /

उठो जागो मत सोओं

जियो अपनी ज़िन्दगी को

मत डरो इन हवानो से

वार करो इनके अभिमानो पर

ये तो भुखे है तुम्हारे

लेकिन तुम !

नहीं हो कोई खाना जिसे खाया जाये

नहीं हो कोई पानी जिसे पिया जाये !तुम इन्सान हो तुममे जान है , जान है

 

कोई पुरुष नारी को मारता है तो कोई उसे खिलौने की तरह खेलता है

लेकिन पुरुष ये क्यों , नहीं समझते की वो आखिर पैदा एक ,माँ की ही कोख से

होआ है और जो माँ अपने बच्चे को जन्म देती है वो उसे वैसे ही गलत काम करने पर

जान ले भी सकती है

 

मैं सभी लडकियों से ये कहना चाहती हू की

लड़को से डरो मत अगर वो एक कहे तो तुम

दस कहों ये भारत देश जितना लड़को का है उतना हमारा भी है

आओ सब मिलकर लडकियों पर हो रहे अत्याचारों को रोके .
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एक चीख

संदीप भाटिया
Teacher, Study Hall School

ये कैसा रूप है वहशीपन से भरा

दरन्दगी से भरा

दर्द से भरी, सहमी हुई एक चीख

जो हिला देती है रुला देती है

तुम्हारा होना ही गलत है ?

क्या नारी होना ही है  अभिशाप

हैवानियत का ऐसा रूप

डराता है

जिन्दगी जैसे कहीं छुप जाती है

बाहर न निकलना कुछ ना कहना – – –

बस एक चीख- – – – – – – – सहमी हुई – – – – दर्द से भरी

हर सन्नाटे में छुपी  – – – – – – –  एक चीख

दूर तक जाती है आवाज – – – – – –

पर कोई नही सुन रहा निशब्द

सन्नाटा  – – – – —  — – –

दरिंदो की दरिंदगी  – – – – – — – – –  वहशीपन
जहां से मिला प्यार  – – – — –

माँ की ममता को किया शर्मसार

उसी ममता , उसी नारी को किया दागदार  –  – – – –

दर्द से भरी , सहमी हुई  – – – – एक चीख

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पंख से कुछ नहीं होता, होसलो से उडान होती है

ज्योति वहाल
Prerna Girls School

दिल्ली कांड से हमें कुछ सबक सीखना चाहिए ।

पीड़ित नारी को समाज में हिकारत भरी नज़रो से देखा जाता है

पुरुष वादी मानसिकता और धर्म की दकियानूसी बातो को दर किनार कर

उसे सम्मान की नजरो से देखने की ज़रूरत है

ताकि वह किसी और के द्वारा किये गए अपराध के कारण अपना जीवन

घुट -घुट कर गुजारने को मजबूर न हो ।

मंजिल उन्ही को मिलती है

जिनके सपनो में जान होती है

पंख से कुछ नहीं होता

होसलो से उडान होती है

आंधियाँ है तो क्या दीप जला लेगें हम

उलझने है तो क्या कदम बढ़ा लेगें हम

लाख रोके कोई हमें रूकेगें आज न हम

अपनी मंजिल पर जाकर ही दम लेगें हम

यह जीवन पथ है अद्वित्ये

मत लीक पकड़ कर चला करो

कुछ खोजो रहा नई अपनी

खुद दीपक बनकर जला करो ।

 
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माँ तुम्हारी याद आती है

Nehal Bhatia
Prerna Girls School

खुदा ने ‘माँ ‘ से सवाल किया अगर आपके कदमो से जन्नत ले ली जाए और आपसे कहा जाए

की कुछ और मांग लो तो आप खुदा से क्या माँगोगी ……..?

तो ‘माँ’ ने बहुत खुबसूरत जवाब दिया ……………

“मैं अपनी ओलाद का नसीब अपने हाथ से लिखने का हक मांगूगी ।

क्योकि ……

उनकी  ख़ुशी  के  आगे  मेरे लिए जन्नत  छोटी  है।”

कोई माँ जब थपकी  से अपने बच्चे  को सुलाती है

खुद तो धुप सहती है, बच्चे  को आँचल  ओढाती  है ,

तो यह देख कर ,

माँ तुम्हारी याद आती है ।

जब परीक्षा के दिन मै घबराती थी , किताब खोल के बस सहम जाती थी ,

और माँ मुझे दही चीनी खिलाती थी ,

फिर खाना परोस कर परीक्षा का हाल पूछती थी ,

तो ये सोच ,आँखे नम हो जाती है ,

तब माँ तुम्हारी याद आती है ।

पिता की डाट का सिलसिला ,जब कम नहीं होता ,

माँ का पिता को समझाना के डाटना कोई हल नहीं होता

इस बार जरुर कुछ करके दिखाएगी ,

चुपके -चुपके से कही रो भी आती थी ,तो यह सोच

माँ तुम्हारी याद आती है ।

कॉलेज के दिनों में मस्ती करके घर देर से आना

फिर कोई पुराना सा बहाना बनाना ,

हर गलती को माफ कर वो मुस्कुराती थी ,

तो ऐसे  मे माँ तुम्हारी याद आती है ।

हर औरत की यही पहचान है , अपना परिवार संभालना ही सबसे पहला कर्तव्य मानती है ।

फिर भी समाज में वही बेटी ,वही माँ ,वही औरत कोई स्थान नही पाती ।

हमेशा पुरुषो द्वारा दबायी जाती है ।

हर क्षेत्र में पुरुषो द्वारा दबायी जाती है ।

हर क्षेत्र में अपनी जगह बनाती है फिर भी सुरक्षित  कही नहीं खुद को मानती है ।

यही बदलाव हमें समाज में लाना है ।

सुरक्षित  हर जगह को औरत के लिए बनाना है ।

वही स्थान उसे दिलाना है जिसकी वो हकदार है

जनम से पहले ही जो मार दी जाती है ,

उसे वही दुलार और प्यार दिलाना है ,

बस माँ हर औरत की कहानी सुन तुम्हारी याद आती है ।

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कौन है वो

Ananya Nagar
Motilal Nehru National Institute Of Technology,Allahabad
कौन है वो 
हर रोज़ उसे मैं देखता हूँ
आँखें नीचे
बाल संभाले
अपने अंगो को
ध्यान से धाके
मुह सिये
चुपचाप जिए
वो कौन है
कौन है वो
क्या वो माँ बन पाएगी
??
क्या वो औरत कहलाएगी
??
वह तो है बस बच्चा जनने की
एक मशीन
न है माता
न है गृहणी
न है पत्नी
है तो बस
एक मशीन
जिसके पुर्जे ढीले पड़े तो
रखो किसी स्टोररूम में
जब एक नयी मशीन
उसकी जगह न ले ले
बाज़ार सजा है मशीनों से
गोरी
काली
गाने वाली
चौका बर्तन करने वाली
पौडर लिपस्टिक और है लाली
जब तक दमकता है चेहरा
तब तक काम की लगती है
झुरियों वाली मशीन भला किसे पसंद है
पड़ी रहे किसी स्टोररूम में
आँखे मूंदे
न है माता
न है गृहणी
न है पत्नी
है तो बस
एक मशीन
जो बच्चा जने
बिस्तर सेके
रोटी बनाये
पिरस खिलाये
लात भी कहए
चलती जाए
थक हार के फिर से
मन बहलाए
चलती जाए
चलती जाए
कौन है वो
औरत अबला नारी
या एक
“मशीन

 

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