ऐसा तो इन्सान है

 

Sunita Singh
Virangana (Activist Group, Prerna Girls School)

इस सुंदर सृष्टि में न कोई जहान था ।
धरती से अम्बर तक सभी जगह वीरान था ।
ईश्वर का खिलौना , कठपुतली इन्सान था ।
खेल -खेल में हुई गलती , बुद्धि  दिया अपार था ।

 

बुद्धि   पाकर भला मानुष , बना एक शैतान है  ।
धरती बाटी, सागर बाटा ऐसा तो बेईमान है  ।
हिन्दु , मुस्लिम , सिख , इसाई ।
सब थे एक दिन भाई- भाई ।

 

एक हृदय के चार टुकड़े को
देख हँसता एक हैवान है  ।
ईश्वर के आँखों में नमी, कोसता भी ईमान है ।
खंड किया हर चीज़ों को ऐसा तो इन्सान है  ।

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दीपक

ज्योति वहाल
Teacher, Prerna Girls School

दिल्ली कांड से हमें कुछ सबक सीखना चाहिए ।
पीड़ित नारी को समाज में हिकारत भरी नज़रो से देखा जाता है
पुरुष वादी मानसिकता और धर्म की दकियानूसी बातो को दर किनार कर
उसे सम्मान की नजरो से देखने की ज़रूरत है
ताकि वह किसी और के द्वारा किये गए अपराध के कारण अपना जीवन
घुट -घुट कर गुजारने को मजबूर न हो ।

मंजिल उन्ही को मिलती है
जिनके सपनो में जान होती है
पंख से कुछ नहीं होता
होसलो से उडान होती है
आंधियाँ है तो क्या दीप जला लेगें हम
उलझने है तो क्या कदम बढ़ा लेगें हम
लाख रोके कोई हमें रूकेगें आज न हम
अपनी मंजिल पर जाकर ही दम लेगें हम
यह जीवन पथ है अद्वित्ये
मत लीक पकड़ कर चला करो
कुछ खोजो राह नई अपनी
खुद दीपक बनकर जला करो ।

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Evaluating XX in Education Equation

 

 

 

 

The doctors had given up, the tubes had been removed and the crash cart pulled away. For a heart-stopping moment, it felt like end of the world to the parents of a young girl who aspired to become a Physiotherapist and a valuable contributor to the society.  A family that migrated to the city, treated their daughter no less than a son and educated her despite the hardships, was left devastated, wondering how can this possibly happen to them! On the surface, a rape and murder case seems like just another crime in a state struggling hard to maintain law and order condition but largely it’s a matter of twisted value system at personal level and misplaced national priorities at the governance level.

How long before we realize the importance of a thoughtful, exhaustive and impact oriented education system having the power of developing sensitive, productive and responsible citizens.  The Indian education system manufactures 100,000 graduates of which only 53 percent are employable. A Wall Street Journal article states “75 percent of technical graduates and more than 85 percent of general graduates are unemployable by India’s high growth global industries.” In a country with more than 65% population below the age of 35, unemployability in high quality jobs and a woman being raped every 20 minutes, what exactly are we teaching our children again?

Major changes have taken place in the status of women in some parts of the world in recent decades but the norms that restrict women to the homes are still powerful in India, defining activities that are deemed appropriate for women. They are, by and large, excluded from political life, which by its very nature takes place in a public forum. Certain broad circumstances in which the Indian women live affect the way they participate in the economy and it further widens the inequality. It is both in homes and in educational institutes where systematic efforts need to be made to inculcate in boys respect for woman and in girls a sense of responsibilities outside homes.

Definition and nature of power is fast changing and a window of opportunity is open for youth to transform the deep rooted patriarchal social structure. All what is required is a strong commitment and women need to prepare themselves for leadership roles in order to even up gender-specific vulnerability. Knowledge, skill-set and professional mindset are great equalizers in our times.

So far all sorts of preventive measures and amendments in criminal law to deal with sexual assault cases have been debated but there seems to be no immediate resolve.  It’s a long way from here when society will see the results of these micro level initiatives but a beginning must be made now.

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मेरे सवाल

सुभाषिनी
कक्षा – आठ, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, मलीहाबाद

 

लड़कियों को कमज़ोर नहीं समझना चाहिए । दिल्ली रेप कांड में जो हुआ वह हमारे लिए ही नहीं पूरे संसार के लिए शर्मनाक घटना है , हम सभी लडकियाँ अपने समाज में कितनी असुरक्षित है हम चाह कर भी दामिनी के साथ हुए दुष्कर्म को सही न्याय नहीं दिला सके । पहले दिन जब हमारी टीचर ने हमें सब बताया तो हम सब सिहर गए । जब कुछ दिन के बाद वह मर गई तो हम सब ने सोचा कि काश वह जिन्दा होती तो कम से कम अपनी बात बताती । क्या हम लडकियाँ कभी भी सुरक्षित नहीं रहे पायेगे ? क्या पूरे जीवन हम लड़कियों को अपने होने का पछतावा होगा ? क्या दुराचारी लड़कों को हम सजा दिला पायेगें ? क्या स्त्रियों को न्याय मिलेगा ? क्या हमारे समाज में बदलाव होगा ? क्या हम एक प्रश्न  ही बने रहेगें

 

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दिल्ली गैंगरेप पर मेरे विचार

 

पुष्पा रावत 
कक्षा – 8 , कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, मलीहाबाद

दिल्ली गैंगरेप घटना पर मै अपने विचार देना चाहती हूँ की जो यह कांड हुआ है इस पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए , जिससे दामिनी के साथ जो घटना हुई है। यह घटना किसी और के साथ न हो। और जिन लोगो ने यह किया है उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। उस लड़की का कुछ सपना था। वह कुछ बनाना चाहती थी। लेकिन कुछ पलों में उसके सारे सपने टूटकर बिखर गए। और जीने की आशा ख़त्म हो गई। दामिनी को क्या पता था की उसके साथ यह भी हो सकता है?
क्या इसके लिय वह जिम्मेदार थी?
हमारे समाज में ऐसी बहुत साडी घटनाये होती है पर किसी न किसी तरीके से उसे दबा दिया जाता है ऐसा क्यों? एक लड़की की जिन्दगी उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। अगर उसके साथ बलात्कार हो जाता है तो लड़की स्वंय को दोषी मान बैठती है।और जीवन में सारे खवाबो को भुलाने पर मजबूर हो जाती है। और अपने को ख़त्म कर लेती ई यदि ऐसा चलता रहा तो लडकियों का जीवन आगे नहीं बढ़ेगा|
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लडकियों को सम्मान से जीने का अधिकार है

 

चाँदनी रावत
कक्षा – आठ, कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, मलीहाबाद

लडकियो को समाज में सम्मान से जीने का अधिकार तो है पर हम लडकियाँ  न तो समाज में सम्मान पूर्वक जी पा  रही  है ,न ही सुरक्षित है । भारत मे लडकियाँ  सपने तो देखती है पर वह पुरे नहीं हो पाते  है । लडकियाँ  या महिलाये समाज में पूरी तरह  से सुरक्षित  एव  अपनी ज़िंदगी  को अत्यंत सम्मानपूर्वक व्यतित  करना चाहते है और अपने आप को समाज में सम्मानपूर्वक प्रस्तुत करना चाहती है , पर यह इच्छा उनकी पूरी नहीं हो पा  रही है ।अगर देश में ऐसे लडकियों के साथ दुष्ट कर्म होते रहे तो शायद लडकियों की इच्छा कभी नहीं पूरी हो पायेगी । कुछ लडकियों की पारिवारिक समस्यों की वजह से उनके सपनो का दम घुट जाता है और जो पारिवारिक समस्यों से पीछा  छुड़ाकर  अपने सपनो को साकार करने की कोशिश करती है तो वह समाज में फैले दरिंदो से पीछा  नहीं छुडा  पाती है । और उनका एव   उनके सपनो का दमन हो जाता है और उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता  वह याद बनकर रह जाती है और समाज में फैले दरिंदो का अत्याचार और भी बढ  जाता है ।
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महिला सुरक्षा

 

शिवानी तिवारी
कक्षा – आठ , कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, मलीहाबाद

 दिल्ली गैगरेप  पर मै अपने विचार लिख रही हू । दिल्ली गैगरेप में दामिनी नाम की लड़की के साथ जो भी हुआ  ऐसा किसी भी महिला के साथ घटना हो सकती है । दामिनी के भी कुछ सपने थे जो की अपराधियों ने पुरे नही होने दिये  , यह सब इतना घटित होने के बाद इसका कुछ उपाय करना चाहिए   जिससे की  लडकियाँ  भी उतनी ही आज़ादी पा सके जितने की लड़के , क्यों कि लडकियाँ  अपनी जिंदगी जीना चाहती है , और अगर यह अपराध होते रहेंगे  तो समाज में लडकियो का जीना मुशिकिल  हो जाएगा । जो लोग यह अपराध करते है उन्हें ऐसी सजा देनी चाहिए जिससे की यह अपराध न हो । इन लोगो को कड़ी सजा देनी चाहिए । लेकिन कोर्ट ने उन्हें ऐसी कोई सजा नही दी जिसे देख कर या सुनकर लोग इतना ज्यादा  डर जाएँ की कभी भी ऐसी आगे कोई घटना न हो । अपराधियों को सीधे फाँसी  की सजा देनी चाहिए । जिसे देखकर व सुनकर लोग ऐसा कर्म करने से डरे  और लडकियाँ अपने सभी सपने पूरे  कर सके ।
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दिल्ली रेप काण्ड

गोल्डी यादव 
कक्षा – आठ ,  कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय, मलीहाबाद

दिल्ली रेप काण्ड बहुत दुखद पूर्ण और बहुत ही शर्मनाक काण्ड था । यह घटना दिल्ली में 16 दिसंबर को घटित हुई , लड़की ने जो शारीरिक उत्पीडन झेला । उसको अगर हम सब लोग सोचते है तो आँखों में आंसू निकल आते है , और मन भयभीत हो जाता है । दुर्घटना के दिन से हमने उसके जीवित रहने की प्रार्थना की और यह चाहते थे की काश वह जीवित रहे तो कम से कम अपराधियों को दण्ड मिलता देखे । जिससे उसके साथ दुष्ट कर्म किया जिससे उसकी आत्मा को शांति मिल जाती । मेरे विचार से अपराधियों को फाँसी  की सजा नहीं बल्कि उनको कारागार में डाल देना चाहिए व् अंग भंग कर देना चाहिए उनको यह सदैव महसूस होता  रहे की उन्होंने कभी कितना घिनोना अपराध किया था । ऐसे अपराधियों को तुरंत सजा देनी चाहिए और हमें पूरे विश्व में फैली हुई इस घटना को कभी भूलना नही चाहिए और अपराध करने वाले अपराधियों को ऐसी सजा देनी चाहिए की अपराध करने से पूर्व वे कई बार सोचे ।

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नारी तुम केवल श्रध्दा हो

 

Chetna Jaiswal
Teacher, Prerna Girls School

नारी तुम केवल श्रध्दा हो जग के सुन्दर आगंन में।
पियूष सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।

नारी- नाम है सम्मान का, या समाज ने कोई ढोंग रचा है,
बेटी – नाम है दुलार का, या समाज के लिए सजा है,
पत्नी – किसी पुरुष की सभी है या यह रिश्ता भी एक उगी है,
माँ – ममता की परिभाषा है, या होना इसकी भी एक निरासा है,
नारी – नाम है स्वभिमान का, या इसका हर रिश्ता है अपमान का !
कहते है यहाँ सबको जिन्दगी स्वतंत्रता पूर्वक जीने का हक़ है। क्या आपको लगता है की हर व्यकित स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जी रहा है? नहीं- पुरुष शायद जी रहे हो पर महिलाओं को तो स्वतंत्रता शब्द  का अर्थ ही नहीं पता। औरत को सिर्फ एक ही शब्द से “नवाजा ” है की वह नारी ही देश का भविष्य उजागर करेगी – लेकिन सच तो यह है की इस पुरुष प्रधान देश में औरत ने कभी अपनी जिन्दगी जी ही नहीं क्योकि यहाँ नारी को एक वस्तु समझकर कठपुतली की तरह इस्तेमाल करते है! घर में पति बाहर छेड़छाड  बलात्कार इन सभी मुश्किलों से जूझना पड़ता है फिर भी उसे ही गलत साबित कर दिया जाता है ।
कहने को तो हम नारी आधी दुनिया है । मगर क्या कभी आधा घर भी हमारा हुआ है ? जन्म लेते ही दिखाई दिया , पिता और भाई का अधिकार होता रहा नारी के हर फैसले का प्रतिकार , शादी के बाद सहा पति, देवर और ससुर का तिरस्कार, जीवन का कौन सा पल जो नारी ने अपनी मर्जी से जिया सारे हक, सारे वजूद, सारे फैसले सिर्फ और सिर्फ पुरुष ने ही तो लिया फिर क्यों कहते है कि हम आधी दुनिया है
जो अपराध करता है वो तो अपराधी है ही, लेकिन जो ये अत्याचार बिना आवाज उठाए सहती है । वह नारी भी अपराधी है । यदि पति मारता है तो सास कहेगी आवाज  बाहर न जाने पाए तथा माँ कहेगी कि जैसा भी है पति है तेरा । इस तरह महिलाएं ही महिलाओं की असुरक्षा का मूल कारण है । इसलिए अब हम नारियों को आवाज उठाना ही नही बल्कि अपने अधिकारों के प्रति सचेत भी रहना होगा ! और हम नारियों को संगठित होकर एक सवेरा बनकर प्रस्तुत करने का समय आ गया है । सूरज के उगने में जो दो हाथ पूजा के लिए उठते है । वही हाथ रात के  अँधेरे में दुष्कर्म करने से नही  डरते वर्षों से चला आ रहा रिवाज़ का ताना बाना जिसके नीचे पडा हर औरत को दब जाना,
पति देवर, सुसर, जेठ
हर एक के चढ़ गयी बनकर तुच्छ भेंट
आजादी क्या है उसने अब तक न जाना
दबाया गया उसे अनेक बहाना
बदलता गया दौर घुमती गई घडी की सुई
पुरुषों का रहा वही  रवैया  रही  उनकी आत्मा सोई
कोई तो आगे आकर आवाज उठाओ
बस अब नही सहेंगे चल कर उन्हें बताओ
तोड़ दो सब दीवारे और बेड़िया
अब नही चढ़नी  और पाप की सीढिया
औरत तू नही कमजोर
अब तेरे ऊपर नही किसी का जोर
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Story of a student of Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya

Story of a student of Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya

I was just seven years old when I first experienced assault in my life. I was returning from the fields with my friend and suddenly a boy grabbed me and started touching me indecently in my private parts. I was terrified and was crying for help.

Fortunately my friend Usha (name changed) ran away and brought my parents immediately. The boy was badly thrashed, but there was no legal action taken against him. I was saved from a terrible fate but I could never forget that incident.

Last year we were introduced to the critical dialogues by Digital Study Hall(DSH) I wish I was aware about my rights then I could have voiced my anger, I could have forced my parents to go to the police and appealed for justice. Its not fair that he did something wrong but I had to suffer for it.

Name with held

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